Sunday, September 14, 2008

बिना पढे टिप्पनी देना कहां तक सही है?

"यहाँ तो सब उल्टा है मै जिसका ब्लॉग पड़ता हूँ और वह म....... जाता है"
ये लीखा "महेंद्र मिश्रा" जी ने। मेरे पिछले पोस्ट पर "मेरा ब्लोग पढने वाला तो बम धमाको मे मर गया, अब किसका वीरोध करूं?" यहां ईनके विरोधा-भाष कमेंट देने से पहले सायद ईनहोने पढा नही है कि मैने क्या लीखा है।
मैने ये नही लीखा है की पढने वाला मर गया है और वो आप ही हैं
मैने लीखा है की वो पढता होगा। आतंकवाद की वजह से उसका घर,परीवार छीन गया।उसके घर वाले कैसे रह सकेंगे उसके बीना। उसका बेटा होगा।
मै आतंकवाद की क्रुरता पर लीखा है

अपको वो पोस्ट पढने के बाद ही सही से पता चलेगा की क्या लीखना चाहता हूं। उन लेखों को दो शब्द मे नही बता सक्ता।

ना जाने क्यो कोई किसी को जगाना चाहता है तो उसे सूलाने वाले ज्यादा आ जाते हैं।

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